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आंतों के रोग : आंतों में कीड़े होना (कृमिरोग) (Intestinal Worms)


आंतों में कीड़े होना (कृमिरोग) (Intestinal Worms)

परिचय:-

आंतों में कीड़े होने का रोग अधिकतर बच्चों को होता हैं क्योंकि बच्चे अपने पेट की सफाई के बारे में पूरी तरह ध्यान नहीं देते। बच्चे खेलते समय दूषित मिट्टी व गंदी चीजों के संपर्क में आ जाते हैं। कभी-कभी छोटे बच्चे मिट्टी से सनी हुई उंगलियां खेलते-खेलते अपने मुंह में डाल लेते हैं, जिससे संक्रमण उनके पेट के अन्दर फैल जाता है, क्योंकि ये परजीवी कीड़े अपने अण्डे मिट्टी में देते हैं। यह कीड़े नाखूनों के द्वारा मुंह में आसानी से अन्दर चले जाते हैं। कीड़े पालतू जानवरों के साथ खेलने से भी पेट के अन्दर चले जाते हैं। लेकिन कभी-कभी बड़े व्यक्तियों की आंतों में भी कीड़े हो जाते हैं। इन कीड़ों के संक्रमण के कारण बच्चों में कई प्रकार के रोग होने का खतरा बना रहता है। आंतों में कई प्रकार के कीड़े हो जाते हैं जिनमें एक परजीवी कीड़ा भी होता है।
जो कीड़े आंतों में होते हैं वे विभिन्न प्रकार के होते हैं-
1. टेप वार्म- ये कीड़े 5 से 10 मीटर लम्बे होते हैं। इन कीड़ों के कारण दिमाग पर बहुत अधिक असर पड़ता है तथा उसमें किसी प्रकार का रोग हो जाता है। ये कीड़े अधपके मांस के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं या कुत्ते का झूठा भोजन सेवन करने से शरीर में चले जाते हैं।
2. गायरडिया- ये कीड़े एक प्रकार के बैक्टीरिया के जीवाणु होते हैं। ये कीड़े आंखों से दिखाई नहीं देते हैं। जब ये कीड़े शरीर में पंहुच जाते हैं तो टांगों को कमजोर कर देते हैं।
3. थ्रैड वार्म- ये कीड़ें धागे के आकार के होते हैं और इनका रंग सफेद होता है और इन कीड़ों की चौड़ाई आधे से 1 इंच तक होती हैं। इन कीड़ों के कारण रोगी को कभी दस्त तो कभी कब्ज बनी रहती है।
4. राउण्ड वार्म- ये कीड़े बरसाती केंचुओं की तरह मटमैले रंग के तथा कई इंच लम्बे होते हैं। इन कीड़ों के कारण रोगी को मिचली, उल्टी, वजन घटना, बुखार, चिड़चिड़ापन आदि परेशानियां पैदा हो जाती हैं।
5. हुक वार्म- ये कीड़े 5.10 मीटर लंबे होते हैं तथा ये दिमाग को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। ये कीड़े अधपके मांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं तथा कुत्ते के द्वारा छोड़ा गया भोजन खाने से शरीर में चले जाते हैं।
कीड़ों से रोग होने का कारण.
  • जब ये कीड़े रोगी के आमाशय तथा आंतों में पंहुचकर अण्डे देते हैं तथा वहीं विकसित होते हैं तो ये आमाशय तथा आंतों को रोगग्रस्त कर देते हैं। कभी-कभी तो ये कीड़े पाचन मार्गों पर चले जाते हैं तथा उल्टी के द्वारा बाहर निकलते हैं।
  • इन कीड़ों के द्वारा रोगी को बुखार, पेट में दर्द तथा डायरिया जैसे रोग हो जाते हैं। जब बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं तो वह दांत-किटकिटाता रहता है। ये कीड़े आंतों की दीवारों से चिपककर खून की नसों में छेद करके खून पीते रहते हैं और उसी पर निर्भर रहते हैं।
  • कभी-कभी कीड़ों के अण्डे मल के साथ बाहर आ जाते हैं। अण्डों में से कीड़े शरीर के बाहर निकलते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने नंगे हाथ अथवा पैर दूषित मिट्टी के संपर्क लाता है या किसी प्रकार से छोटे-छोटे कीड़े त्वचा के द्वारा शरीर में प्रवेश करके रक्तवाहिनी नसों द्वारा फेफड़ों में चले जाते हैं तो वह व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाता है। ये कीड़े -कभी-कभी गले तक आ जाते हैं और दुबारा पेट में पहुंच जाते हैं और व्यक्ति के शरीर में रोग उत्पन्न कर देते हैं।
  • कुछ कीड़े बहुत छोटे होते हैं और त्वचा में प्रवेश कर जाते हैं। ये कीड़े त्वचा में खुजली तथा जलन पैदा कर देते हैं तथा वहां पर घाव तथा ददोड़े भी बना देते हैं। जब आंतों के अन्दर ये कीड़े बढ़ने लगते हैं तो शरीर के भीतरी अंगों की कार्य प्रणाली प्रभावित हो जाती है जिसके कारण रोगी को सिर में दर्द, भूख न लगना, डायरिया, बेचैनी, आलस्य, सांस का फूलना तथा वजन का कम होना आदि रोग हो जाते हैं।
  • यदि कोई व्यक्ति अपने गुदाद्वार के चारों ओर की त्वचा को साफ तथा सूखा नही रखता तो उस व्यक्ति के शरीर में इन कीड़ों का संक्रमण तेजी से होता है।
शरीर में कीड़े होने के लक्षण-
            यदि किसी व्यक्ति के शरीर में कीड़े हो जाते हैं तो उसे कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जैसे- चेहरे का रंग फीका पड़ना, भोजन में अरुचि, दस्त लगना, नाक में खुजली होना, रात में सोते समय दांत किटकिटाना, मलद्वार में खुजली होना, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, सांस में बदबू, आंखों के नीचे कालापन, बार-बार खाने की इच्छा होना, बुरे-बुरे सपने आना, मिचली, उल्टी, वजन कम होना, बुखार, पैरों में कमजोरी, बदहजमी तथा पेट मे  दर्द होना आदि।
प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा कीड़ों को मारना-
  • इन कीड़ों को मारकर पेट से बाहर निकालने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कीड़े होने के सभी कारणों को दूर करना चाहिए उसके बाद अपना उपचार करना चाहिए।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा पेट के कीड़ों को समाप्त करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को 3 दिन तक सिर्फ पानी में नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए।
  • रोगी को आवश्यकतानुसार रसाहार खाद्य पदार्थों का सेवन करके कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक रोगी को फल, सलाद आदि का सेवन करना चाहिए और फिर सामान्य भोजन पर आ जाना चाहिए।
  • बच्चों को दूध का भोजन नहीं देना चाहिए बल्कि इसके बदले फलों का रस देना चाहिए क्योंकि दूध के सेवन से ये कीड़े पेट में और ज्यादा पनपने लगते हैं।
  • बच्चों को कच्ची सब्जियां तथा पके फल जिन्हें बच्चा चबाकर खा सके, खाने के लिए देनी चाहिए। इसके अलावा उसे दही और मट्ठा पीने के लिए दे सकते हैं।
  • यदि किसी व्यक्ति के पेट में टेपवार्म कीड़े हो जाए तो रोगी व्यक्ति को लंबे समय तक उपवास रखना चाहिए तथा पेट पर गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार पानी में शहद या नींबू का रस मिलाकर एनिमा या नीम की पत्ती को पानी में उबालकर उस पानी का एनिमा रोगी को लेना चाहिए तथा अपने शरीर पर प्रतिदिन मिट्टी की पट्टी करते रहना चाहिए। इसके बाद रोगी को कटिस्नान करना चाहिए। इससे टेपवार्म कीड़े मरकर पेट से बाहर निकल जाते हैं।
  • टेपवार्म कीड़ों को मारने के लिए रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन शंख प्रक्षालन क्रिया करनी चाहिए तथा इसके साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार भी करना चाहिए। इससे ये कीड़े कुछ ही दिनों में मरकर पेट से बाहर निकल जाते हैं।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार प्रतिदिन विभिन्न योगक्रिया करें. नौलि, उडि्डयान बंध, नौकासन तथा मयूरासन आदि।
  • पेट के कीड़ों को मारने के लिए 2 भाग दही तथा 1 भाग शहद को एकसाथ मिलाकर रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम चटाना चाहिए। इससे यह कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  • बच्चों को सुबह के समय में 3 चम्मच अनार का रस पिलाने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
  • कीड़ों को समाप्त करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 चम्मच पोदीने का रस सुबह.शाम पीना चाहिए।
  • नीम के पत्तों को पीसकर उसका शर्बत बनाकर कुछ दिनों तक पीने से  पेट के कीड़े मर जाते हैं।
  • पालक के पत्तों को अजवाइन के साथ पीसकर पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से पेट के कीड़े मरकर मलद्वार के रास्ते बाहर आ जाते हैं।
  • छोटे बच्चों के पेट के कीड़ों को समाप्त करने के लिए सुबह तथा शाम 1 चम्मच प्याज का रस गर्म करके बच्चे को पिलाने से लाभ होता है।
  • रोगी को सुबह.शाम 1 चम्मच ताजे आंवले का रस कुछ दिनों तक पिलाने से उसके पेट के कीड़ें जल्दी ही मर जाते हैं।
  • पेट के कीड़ों को मारने के लिए 1 चम्मच बेल पत्थर का रस सुबह-शाम रोगी को पिलाना चाहिए।
  • कीड़ों को मारने के लिए लौकी के बीजों को भिगोकर, छीलकर और पीसकर पीने से बहुत लाभ मिलता है।
  • 1 चम्मच कच्चे पपीते का रस तथा 1 चम्मच शहद को 3.4 चम्मच गर्म पानी में मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति को बारी-बारी से कटिस्नान गर्म तथा ठंडे पानी से कराने से बहुत अधिक लाभ मिलता है इससे कुछ ही दिनों में कीड़े मरकर मलद्वार के रास्ते बाहर निकल जाते हैं।
  • यदि रोगी व्यक्ति कुछ दिनों तक नियमित रूप से गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करे तो उसके पेट के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
  • रोगी व्यक्ति को रात को सोते समय पेट पर गर्म पट्टी रखनी चाहिए तथा सुबह के समय गर्म पट्टी को हटा देना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है और पेट के कीडे समाप्त हो जाते  हैं।
  • 1 चम्मच अजवायन का बारीक चूर्ण 2 गिलास पानी में रात को भिगोने के लिए रख देना चाहिए। सुबह के समय में इस पानी को उबालकर ठंडा करके पी लेना चाहिए। इस पानी को रात के समय में भी पीना चाहिए। इससे पेट के कीड़े मर जाते हैं और मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  • पेट के कीड़ों को मारकर मल के द्वारा बाहर करने के लिए लहसुन की 4.5 कलियों को शहद के साथ 2 सप्ताह तक लेना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ होता है।
  • कीड़ों को मारकर मल के द्वारा बाहर निकालने के लिए नींबू के बीजों को सुखाकर कूट-पीस कर चूर्ण बना लें। इस 1 चुटकी चूर्ण को दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ कुछ दिनों तक लेने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  • पेट के कीड़ों को मारने के लिए 2.3 अखरोटों को चबाकर ऊपर से 1 गिलास फीका दूध पी लें। इस प्रकार की क्रिया को कम से कम 15 से 20 दिन तक करने से कीड़े मरकर मलद्वार के रास्ते बाहर निकल जाते हैं।
  • भोजन में हींग डालकर कुछ दिनों तक सेवन करने से पेट के कीड़े जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं।
सावधानी-
  • शरीर में कीड़े होने से बचने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सभी व्यक्तियों को सफाई और स्वास्थ्य की रक्षा के नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए।
  • बच्चों को गन्दगी में खेलने से रोकना चाहिए।
  • खाना खाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
  • खाना खाने वाली चीजों को अच्छी तरह से ढककर रखना चाहिए।
  • नाखूनों को हमेशा काटकर रखना चाहिए क्योंकि बड़े नाखूनों के अन्दर मैल जल्दी बैठ जाता है और नाखूनों के ही द्वारा पेट के अन्दर चला जाता है।
  • सभी व्यक्तियों को अपने खाने में अनन्नास पपीता, गाजर, टमाटर, सेब तथा कई प्रकार की हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
आंतों के रोग : आंतों में कीड़े होना (कृमिरोग) (Intestinal Worms) आंतों के रोग : आंतों में कीड़े होना (कृमिरोग) (Intestinal Worms) Reviewed by ritesh on 2:32 AM Rating: 5

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